पुरापाषाण काल
 (शिकार एवं खाद्य संग्रह युग)

 

भारत में मानव के प्राचीनतम अस्तित्व संकेत द्वितीय हिमावर्तन (ग्लेसिएशन) काल  की परतों से प्राप्त पत्थर के उपकरणों से मिलता है , जिसका काल 25.00,000 ई.पू. बताया जाता है । आदिम मानव को धातुओं का ज्ञान नहीं उसके पास निश्चित घरों का अभाव था।  जानवरों का भय बराबर बना रहता था । खेती करना , आग जलाना और बर्तन बनाने की कला का ज्ञान नहीं था । वे शिकार द्वारा जानवरों के मांस और ऐसे फलों एवं सब्जियों , कंद मूला ( खाद्या संग्रह पर जीवन व्यतीत करते थे , जो जंगलों में उपजाते थे।
पुरापाषाण युग को मानव द्वारा प्रयुक्त होने वाले हथियारों के स्वरूप और जलवायु होने वाले परिवर्तनों के आधार पर तीन वर्गों में बांटा जा सकता है :

1. पूर्व पुरापाषाण युग ( 2500000 ई.पू. – 1000000 ई.पू. )
2. मध्य पुरापाषाण युग ( 100000 ई.पू.- 40000 ई.पू.)
3. उत्तर पुरा पाषाण युग ( – 40000 ई.पू.- 100001.

  1. पूर्व पुरा पाषाण युग – अधिकांश हिमयुग आशम्भक पुरापाषाण युग में ही व्यतीत हुआ है इसका प्रमाण है कुल्हाड़ी या हस्त कुठार ( हैंड – एक्स ) , विदारणी ( क्लीवर ) और गंडासा ( खंडक ) का उपयोग। भारत में प्राप्त हुई प्रस्तर कुल्हाड़ियाँ प्रायः पश्चिम एशिया , यूरोप एवं अफ्रीका से प्राप्त कुल्हाड़ियों जैसी ही हैं । निम्न पुरापाषाण युग के अधिसंख्य स्थल सिंधु नदी की सहायक ‘ सोहन नदी ‘ की घाटी ( सम्प्रति पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में ) पाये गये हैं।  पहली बार सोहन क्षेत्र से सम्बन्धित साक्ष्य मिलन के कारण इसे ‘ सोहन संस्कृति ‘की  संज्ञा भी दी गयी है । अनेक स्थल कश्मीर तथा थार के मरुस्थल में भी मिले है । निम्न पुरापाषाणकालीन हथियार मिर्जापुर जिले की बेलन घाटी ( उ.प्र .) भीमबेटका की गुहाओं(भोपाल म.प्र .) में भी मिले हैं ।
  1. मध्य पुरा पाषाण युग : इस युग में प्रस्तर शल्कों से निर्मित विभिन्न प्रकार के फलक , वेधनी , छदनी और खुरचनी का प्रयोग होता था जो सम्पूर्ण भारत में पाये गये हैं । इस युग का शिल्प कौशल नर्मदा नदी के किनारे – किनारे अनेक स्थानों पर और तुंगभद्रा नदी के दक्षिणवर्ती स्थानों पर भी पाया जाता है ।
  2. उत्तर पुरा पाषाण युग : इस युग में आर्द्रता कम हो गयी थी और जलवायु अपेक्षाकृत गर्म होने जाने से हिमयुग की अंतिम अवस्था आरम्भ हो चुकी थी । इसी युग में आधुनिक प्रारूप के मानव ( होमोसपियन्स ) का आविर्भाव व हुआ । इस युग के प्रस्तर फलक और कुल्हाड़ियाँ आंत्र , कर्नाटक , महाराष्ट्र , केन्द्रीय मध्य प्रदेश दक्षिण उत्तर प्रदेश , पूर्व बिहार ( वर्तमान झारखंड ) के पठारी भाग में पाये गये हैं ।
    गुजरात के टिब्बो के ऊपरी तलों पर एक उच्च पुरापाषाणीय भंडार भी मिला है , जिसमें शल्क फलक , तक्षणियाँ और खुरचनियाँ सम्मिलित हैं ।