वैष्णव (भागवत) धर्म
वैष्णव मत का उद्भव गुप्तकाल में भागवत धर्म को अधिगृहित तथा अपने अन्दर विलीन करने का कार्य प्रारम्भ किया । विष्णु बहुत से स्थानीय देवताओं का सम्मिश्रण हैं । अवतारवाद के सिद्धांत को वैष्णव मत के अन्दर लोकप्रिय देवताओं को संयोजित कर और लोकप्रिय बनाया गया । वैष्णव धर्म के विषय में प्रारंभिक जानकारी उपनिषदों से मिलती है ।जिसका विकास भागवत धर्म से हुआ ।
भागवत सम्प्रदाय का सर्वोच्च देवता ‘ वासुदेव कृष्ण ‘ हैं , जिसकी बाद में पहचान विष्णु के साथ की गयी है । दक्षिण भारत ( तमिल भूमि ) में भागवत आंदोलन का प्रसार 12 अलवारों द्वारा किया गया ।भागवत सम्प्रदाय के प्रमुख तत्व भक्ति एवं अहिंसा है ।
भक्ति का अर्थ प्रेममय निष्ठा निवेदन है । अहिंसा का अर्थ किसी जीव का वध न करना है। वैष्णव धर्म के प्रवर्तक कृष्ण थे , जो बृष्णि कबीले के थे और उनका निवास स्थान मथुरा था । कृष्ण का उल्लेख सर्वप्रथम छांदोग्य उपनिषद् में देवकी – पुत्र और अंगिरस के शिष्य के रूप में हुआ है।
विष्णु के दस अवतारों का उल्लेख मत्स्य पुराण में मिलता है । विष्णु के दस अवतार हैं – मत्स्य , कूर्म , वराह , ( शूकर ) , नरसिंह , वामन , परशुराम ( भृगुपति ) , राम , बलराम (कृष्ण) , बुद्ध एवं कल्कि । अवतारवाद का सर्वप्रथम उल्लेख भगवद्गीता में मिलता है । वैष्णव धर्म में ईश्वर को प्राप्त करने के लिए सर्वाधिक महत्त्व भक्ति को दिया गया है । वैष्णव धर्म का सर्वाधिक विकास गुप्त काल में हुआ ।
शैव धर्म
शैव धर्म की उत्पत्ति वैष्णव धर्म से भिन्न प्रकार के अति प्राचीन अतीत में निहित थी । पूर्व वैदिक धर्म अर्थात् सिंधु धर्म का महत्वपूर्ण अवयव पशुपति महादेव की पूजा करना था। इस देवता को आदिम शिव कहकर वर्णित किया गया है और वैदिक धर्म विशेषकर उत्तर- वैदिक धर्म में रुद्र को पशुपति महादेव का वैदिक प्रतिरूप माना गया है । शैव मत उत्तर – उपनिषद् काल में उस समय सुस्पष्ट तौर पर प्रकट हुआ जब शिव की पहचान आतंकित करने वाले वैदिक देवता रुद्र के साथ की गयी । शिव का अभिप्राय ‘ मंगलमय होना ‘ है । लिंग के रूप में शिव की व्यापक स्तर पर पूजा होती है ।
यह अभिव्यक्ति तथा जीवन का स्रोत है और जिसके अन्दर स्वाभाविक रूप में विखण्डन एवं मृत्यु के बीज विद्यमान है । स्त्री का प्रजनन अवयव ( योनि ) शिव को शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है और यह उसकी लौकिक ऊर्जा का मानवीय गुण है । जब योनि तथा लिंग का एक साथ प्रतिनिधित्व किया जाता है तब यह सृष्टि के महान प्रजनन सिद्धान्तों के महत्त्व को दर्शाता है । • कुछ पुराणों ने सम्पूर्ण सृष्टि की पहचान शिव के साथ उसके पांच रूपी तत्पुरुष , नामदेव , अघोरेश , साधोजात एवं इशान की अवधारणा के माध्यम से की है । . शिव के पाँचों रूपों को पाँच दिशाओं का शासक बताया गया है जिसमें पाताल और आकाश के चार बिंदु शामिल हैं और यह स्थलीय विस्तार की पूर्णता को निश्चित करता है ।
शिव के 11 रुद्र अवतार हैं – कपिल , पिंगल , भीम , विरुपाक्ष , विलोहित , शास्त्र , अजपाद , अहिरबुधन्य , शम्भू , चाँद तथा भाव । शिव के निम्नलिखित अवतार हैं – अर्द्धनारीश्वर , नंदी , शरभ , गृहपति , नीलकंठ , ऋषि दुर्वाशा, महेश , हनुमान , वृषभ , पिप्पलाद , वैजनाथ ( वैश्यनाथ ) , यतिननाथ , कृष्णदर्शन , अवधुवेश्वर , भिछुवरेया ( विश्वेश्वर ) , सुरेश्वर , ब्रह्मचारी सुनातनार्टक , साधु , विभु अश्वथमा , किराट , वीरभद्र , भैरव , अल्लमा , खानदोबा ।
शैवमत के भावनात्मक पक्ष का प्रचार नायनारों द्वारा किया गया था जबकि उसके सैद्धान्तिक पक्ष को शैव बुद्धिजीवियों (आचार्यो ) ने पूर्ण किया । ये आचार्य अगमनत , शुद्ध तथा वीरशैव जैसे शैव आंदोलन के रूपों से संबंधित थे। अघोर शिवाचार्य उनका सबसे योग्य सिद्धान्तकार था । शुद्ध शैववादियों ने रामानुज की शिक्षाओं अपनाया और श्रीकान्त शिवाचार्य उनका महान व्याख्याकार था । मत्स्यपुराण में लिंग पूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मिलता है । शिव धर्म के विकास की प्रक्रिया में कुछ संप्रदायों – पशुपति , कापालिक , कालामुख , लिंगायत आदि का विकास हुआ ।
ईसाई धर्म
ईसाई धर्म के संस्थापक ईसा मसीह थे । ईसा मसीह का जन्म जेरुसेलम के निकट बैथलेहम नामक स्थान पर हुआ था । ईसा मसीह के माता का नाम मेरी तथा पिता का नाम जोसेफ था । ईसा ने अपने जीवन के प्रथम 30 वर्ष एक बढ़ई के रूप में बैथलेहम के निकट नाजरेथ में बिताए। ईसा मसीह के प्रथम दो शिष्य एंड्रूस एवं पीटर थे ।
ईसा मसीह को 33 ई . में सूली पर चढ़ाया गया । इनको सूली पर रोमन गवर्नर पोंटियस ने चढ़ाया। ईसाई धर्म का सबसे पवित्र चिन्ह क्रॉस है । ईसाई त्रित्व में विश्वास रखते हैं , ये हैं , ईश्वर – पिता , ईश्वर – पुत्र , ईश्वर – पवित्र आत्मा । ईसाई धर्म का प्रमुख ग्रंथ बाइबिल है । ईसा मसीह के जन्म दिवस को क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है ।
इस्लाम धर्म
हजरत मुहम्मद जन्म 570 ई . में मक्का में हुआ था । हजरत मुहम्मद के पिता का नाम अब्दुल्ला और माता का नाम अमीना था । हजरत मुहम्मद को 610 ई . में मक्का के पास हीरा नामक गुफा में ज्ञान की प्राप्ति हुई । इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद थे । हजरत मुहम्मद की शादी 25 वर्ष की अवस्था में खदीजा नामक विधवा के साथ हुई । इनकी पुत्री का नाम फातिमा एवं दामाद का नाम अली हजरत हुसैन था । 24 सितम्बर , 622 ई . को पैगम्बर मुहम्मद के मक्का से मदीना की यात्रा इस्लाम जगत में मुस्लिम संवत् ( हिजरी संवत ) के नाम से जाना जाता है । देवदूत गैब्रियल ने पैगम्बर मुहम्मद को कुरान अरबी भाषा में संप्रेषित की थी । इस्लाम धर्म का पवित्र ग्रंथ कुरान है । नमाज के अवसर पर मक्का की ओर की दिशा को किबला कहा जाता है । पैगम्बर मुहम्मद के उत्तराधिकारी ‘खलीफा’ कहलाते हैं ।
8 जून, 632 ई. को हजरत मुहम्मद की मृत्यु हो गई । उसके बाद मदीना में दफनाया गया । हजरत मुहम्मद की मृत्यु के बाद इस्लाम धर्म सुन्नी तथा शिया नामक दो पंथों में विभक्त हो गया । सुन्नी उसे कहते हैं जो सुन्ना में विश्वास करते हैं । सुन्ना पैगम्बर मुहम्मद के कथनों तथा कार्यों का विवरण ग्रंथ है । शिया अली की शिक्षाओं में विश्वास करते हैं तथा उन्हें मुहम्मद का न्यायसम्मत उत्तराधिकारी मानते हैं । अली की 661 ई. में हत्या कर दी गई । अली के पुत्र हुसैन की हत्या 680 ई. में कर्बला ( इराक ) नामक स्थान पर कर दो गई । इन दोनों हत्या ने शिया को निश्चित मत का रूप दे दिया । सर्वप्रथम पैगम्बर साहब का जीवन – चरित्र इब्न ईशाक ने लिखा ।