वैद्युत बल रेखाएँ (Electric Lines of Force)

 

यदि वैद्युत क्षेत्र में स्थित वैद्युत आवेश चलने के लिए स्वतन्त्र हो तो वे बल की दिशा में चलने लगेंगे । यदि किसी आवेश पर लगने वाले बल की दिशा निरन्तर बदल रही है तो आवेश के चलने की दिशा भी निरन्तर बदलती रहेगी अर्थात् आवेश एक सीधी रेखा में न चलकर एक वक्राकार मार्ग पर चलने लगेगा । वैद्युत क्षेत्र में किसी धनावेश के चलने के मार्ग को उस क्षेत्र की ‘ वैद्युत बल रेखा ‘ ( electric line of force ) कहते हैं ।

अत : ” वैद्युत बल रेखा वैद्युत क्षेत्र में खींचा गया वह काल्पनिक , निष्कोण वक्र (smooth curve) है , जिस पर एक स्वतन्त्र व पृथक्कृत (isolated ) एकांक धनावेश चलता है । वैद्युत बल रेखा के किसी भी बिन्दु पर खींची गई स्पर्श रेखा उस बिन्दु पर स्थित धनावेश पर लगने वाले बल की दिशा अर्थात् वैद्युत क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करती है ।

किसी वैद्युत क्षेत्र को उसकी वैद्युत बल रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है । बल रेखाएँ खींचने के लिए एक काँच की प्लेट पर कोई हल्की वस्तु ; जैसे — जिप्सम साल्ट छिड़क देते हैं और प्लेट को वैद्युत क्षेत्र में रख देते हैं । प्लेट पर अंगुली से टप – टप करने से साल्ट के बिखरे कण प्रेरण द्वारा आवेशित होने के कारण अपने को नियमित और व्यवस्थित रेखाओं में संयोजित कर लेते हैं । ये नियमित रेखाएँ वैद्युत बल रेखा को प्रदर्शित करती हैं ।

 चित्र 24 में भिन्न – भिन्न आवेशों से उत्पन्न वैद्युत क्षेत्र में वैद्युत बल रेखाएँ खींची गई हैं चित्र 24 ( a ) तथा चित्र 24 ( b ) में धन – वैद्युत और ऋण – वैद्युत आवेशित गोलों से उत्पन्न वैद्युत क्षेत्र में बल रेखाएँ खींची गई हैं । धनावेश के क्षेत्र में वैद्युत बल रेखाएँ आवेश से चलकर अनन्त तक जाती हैं और ऋणावेश के क्षेत्र में अनन्त से चलकर आवेश तक आती हैं , क्योंकि धनावेश के क्षेत्र में एकांक धनावेश यदि चलने के लिए स्वतन्त्र हो तो प्रतिकर्षण बल के कारण अनन्त तक चला जाएगा । अनन्त पर का मान बहुत अधिक होने के कारण प्रतिकर्षण बल शून्य होगा । इसी प्रकार ऋणावेश के वैद्युत क्षेत्र में एकांक धनावेश आकर्षण बल के कारण अनन्त से चलकर ऋणावेश तक आ जाएगा ।

और चित्र 24 (a) और चित्र 24 (b)  से यह भी स्पष्ट है कि आवेशित गोलों के लिए बल रेखाएँ सीधी और त्रिज्य (radial) होती हैं और गोलों के केन्द्र पर मिलती हुई प्रतीत होती हैं ।

अत : किसी गोलाकार वस्तु के तल को दिया गया आवेश इस प्रकार व्यवहार करता है जैसे कि आवेश गोले के केन्द्र पर स्थित हो ।

चित्र 24 (c) में परस्पर निकट स्थित दो विपरीत बिन्दु आवेशों से उत्पन्न क्षेत्र में बल रेखाएं खींची गई है । बल रेखाएँ धनावेश से चलकर ऋणावेश पर समाप्त हो जाती हैं । चित्र 24 (d) में परस्पर निकट स्थित दो समान बिन्दु आवेशों से उत्पन्न क्षेत्र में बल रेखाएं खींची गई है । इन समान आवेशों को मिलाने वाली रेखा पर एक बिन्दु N स्थित है , जिस पर आवेशों के कारण वैद्युत क्षेत्र की तीव्रताएँ बराबर और विपरीत दिशा में हैं । अतः इस बिन्दु पर परिणामी बल शून्य है । इस विन्दु को ‘ उदासीन बिन्दु ‘ ( neutral point ) कहते हैं । यदि इस बिन्दु पर कोई अन्य आवेश रखें तो उसमें किसी भी दिशा में चलने की प्रवृत्ति नहीं होगी ।

 यदि दोनों बिन्दु धनावेश आपस में बराबर परिमाण के नहीं है तो उदासीन बिन्दु मध्य में नहीं होगा , जैसा कि चित्र 24 (e) में दिखाया गया है । इस दशा में यदि आवेशों के परिमाण q1q2 हों और उदासीन बिन्दु N से इनकी दूरियाँ क्रमशः । r1 तथा r2 हों , तो बिन्दु पर N पर