वैद्युत चुम्बक (Electromagnet)

 

परिनालिका के अन्दर नर्म लोहे की छड़ रखने पर परिनालिका का चुम्बकत्व कई सौ गुना बढ़ जाता है । यह वैद्युत धारा के चुम्बकीय प्रभाव का व्यावहारिक उपयोग है । धारावाही परिनालिका एक दण्ड – चुम्बक की भाँति व्यवहार करती है । यदि इस परिनालिका के अन्दर नर्म लोहे की छड़ रख दी जाए तो परिनालिका का चुम्बकत्व कई सौ गुना बढ़ जाता है । इस स्थिति में यह परितालिका एक वैद्युत चुम्बक कहलाती है ।

यह एक अस्थायी शक्तिशाली चुम्बक है । इस आधार पर वैद्युत चुम्बक बनाने के लिए नर्म लोहे की एक सीधी छड़ ( चित्र ( a ) ] अथवा घोड़े के नाल के आकार की छड़ [ चित्र ( b )] पर ताँबे का वैद्युतरुद्ध तार अनेक फेरों में पास – पास लपेटते हैं । तार लपेटते समय यह ध्यान रखा जाता है कि तार का घुमाव एक ही दिशा में रहे । घोड़े की नाल के आकार की छड़ की भुजाओं पर तार इस प्रकार लपेटते हैं कि उनमें धाराएँ विपरीत दिशाओं में हों [चित्र (b)] | कुछ घण्टों तक इस तार में दिष्ट धारा प्रवाहित करने पर लोहे की छड़ चुम्बक बन जाती है । धारा प्रवाह के समय चुम्बकत्व की मात्रा अत्यधिक होती है तथा धारा प्रवाह को बन्द कर देने पर छड़ में चुम्बकत्व नहीं रहता है । छड़ के जिस सिरे की ओर से देखने पर तार में धारा की दिशा वामावतं है । वह सिरा उत्तरी ध्रुव N तथा दूसरा सिरा दक्षिणी ध्रुव बनता है अथवा जिस सिरे की ओर से देखने पर तार में धारा की दिशा दक्षिणावर्त है वह सिरा दक्षिणी ध्रुव S बनता है तथा दूसरा सिरा उत्तरी ध्रुव बनता है ।

 

 

वैद्युत चुम्बक के उपयोग-  

 

(i) बड़े आकार के वैद्युत चुम्बक फैक्ट्रियों में चलनशील क्रेनों के द्वारा लोहे तथा फौलाद के बड़े – बड़े उपकरणों व गट्ठों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में उपयोग में लाए जाते हैं ।

( ii ) अस्पतालों में वैद्युत चुम्बक आँख तथा शरीर के अन्य किसी भाग से लोहे अथवा फौलाद के छरें निकालने में उपयोग में लाए जाते हैं ।

(iii ) किसी मिश्रण से चुम्बकीय पदार्थों को अलग करने में इनका उपयोग किया जाता है ।

( iv ) वैद्युत घण्टी , टेलीफोन , तार संचार , ट्रांसफार्मर तथा वैद्युत मोटर एवं डायनुमो में वैद्युत चुम्बकों का उपयोग किया जाता है ।

वैद्युत चुम्बक की प्रबलता को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting the Intensity of Electromagnet)

 

(i) क्रोड का पदार्थ – क्रोड के पदार्थ की चुम्बकशीलता जितनी अधिक होती है , वैद्युत चुम्बक की प्रबलता भी उतनी ही अधिक होती है । कुण्डली में क्रोड नर्म लोहे की लेने से वैद्युत चुम्बक की प्रबलता बढ़ जाती है । वैद्युत चुम्बक के पदार्थ में बारीक तथा लम्बा शैथिल्य पाश होना चाहिए । इसकी धारण क्षमता कम होनी चाहिए । पदार्थ तुरन्त चुम्बकीय हो जाना चाहिए तथा उसमें उच्च पारगम्यता होनी चाहिए । वैद्युत चुम्बक बनाने में सिलिकॉन , लोहे तथा म्यूमैटल का भी प्रयोग किया जाता है ।

(ii) वैद्युत धारा –परिनालिका में प्रवाहित वैद्युत धारा की प्रबलता वैद्युत चुम्बक के चुम्बकन के लिए आवश्यक बल प्रदान करती है । क्षीण धारा द्वारा दिए हुए सैम्पल का उपयुक्त प्रकार से चुम्बकन नहीं कर सकती ।

(iii) लपेटों की संख्या –परिनालिका की प्रति इकाई लम्बाई पर तार के लपेटों की संख्या जितनी अधिक होगी चुम्बकन क्षेत्र उतना अधिक होगा । शक्तिशाली वैद्युत चुम्बकों के लिए प्रबल क्षेत्र की आवश्यकता होती है ।

( iv ) तापमान- उच्च तापमान पर चुम्बकत्व नष्ट हो जाता है । इस अवधारणा का विधिवत् अध्ययन क्यूरी के द्वारा किया गया था जिसके लिए उसने एक नियम का प्रतिपादन भी किया|