वैदिक साहित्य से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं के विषय में बताया गया है जो की परीक्षाओं में पूछे जाते हैं-

  • इसके अंतर्गत वेद तथा उससे सम्बन्धित ग्रंथ पुराण, महाकाव्य , स्मृति आदि हैं
  • भारत के सबसे प्राचीन ग्रंथ ‘ वेद ‘ का शाब्दिक अर्थ ‘ ज्ञान ‘ है ।
  • श्रवण परम्परा में सुरक्षित होने के कारण इसे ‘ श्रुति ‘ भी कहा जाता है।
  • वेद कुल चार हैं –
    1. ऋग्वेद
    2. सामवेद
    3. यजुर्वेद
    4. अथर्ववेद
  1. ऋग्वेद (1500-1000 ई.प.)– ऋग्वेद जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बिंदु-
  • भारत की सर्वाधिक प्राचीन रचना ऋग्वेद ‘ऋक्’ का अर्थ ‘ छन्दों तथा चरणों से युक्त मंत्र ‘ होता है।
  • ऋग्वेद मंत्रों का एक संकलन ( संहिता ) है जिन्हें यज्ञों के अवसर पर देवताओं की स्तुति के लिए ‘ होत या होता ‘ ऋषियों द्वारा उच्चारित किया जाता था ।
  • ऋग्वेद की अनेक संहिताओं में से ‘ शाकल सहिता ‘ ही उपलब्ध है ।
  • ‘ संहिता’ का अर्थ संग्रह या संकलन है|
  • सम्पूर्ण संहिता में दस मंडल तथा 1028 सूक्त हैं
  • ऋग्वेद की पांच शाखायें हैं – शाकल , वाष्कल , आश्वलायन , शांखायन तथा मॉडक्या हैं |
  • ऋग्वेद के कुल मंत्रों ( ऋचाओं ) की संख्या लगभग 10,600 है।
  • ऋग्वेद में इंद्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 ऋचाओं ( मंत्रों ) की रचना की गई है।
  • ऋग्वेद का दो से सातवाँ मंडल प्रामाणिक और शेष प्रक्षिप्त माना जाता है।
  • बाद में जोड़े गये दसवें मंडल में पहली बार ‘ शूद्रों ‘ का उल्लेख किया गया है । जिसे ‘ पुरुषसूक्त ‘ के नाम से जाना जाता है ।
  • देवता ‘ सोम ‘ का उल्लेख नवें मंडल में है।
  • लोकप्रिय गायत्री मंत्र ( सावित्री ) का उल्लेख ऋग्वेद में ही है।
  • गायत्री मंत्र जिसकी रचना विश्वामित्र ने की थी जिसका उल्लेख तीसरे मंडल में है ।
  1. सामवेद ( 1000-500 ई.पू. ):-
  • ‘साम ‘ का अर्थ ‘ संगीत ‘ या ‘ गान ‘ होता है। सामवेद में यज्ञों के अवसर पर गाये जाने वाले मंत्रों का संग्रह है । इन मंत्रों को वाला ‘ ‘ उद्गाता ‘ कहालता था ।
  • सामवेद के दो मुख्य भाग हैं – आर्थिक एवं गाना ।
  • सामवेद के प्रथम द्रष्टा वेदव्यास के शिष्य जैमिनी को माना जाता है ।
  • सामवेद की प्रमुख शाखायें हैं – कौथुमीय , जैमिनीय तथा राणायनीय।
  • सामवेद में कुल 1549 ऋचायें हैं । . जिसमें मात्र 78 ही नयी हैं शेष ऋग्वेद से ली गयी हैं ।
  • सामवेद को भारतीय संगीत का जनक माना जा सकता है ।
  1. यजुर्वेद-
  • ‘यजुष ‘ शब्द का अर्थ यज्ञ है । यजुर्वेद सहिता में यज्ञों को सम्पन्न कराने में सहायक मंत्रों का संग्रह है , जिसका उच्चारण ‘ अध्बुर्यु नामक पुरोहित द्वारा किया जाता था ।
  • यह गद्य एवं पद्य दोनों शैली में है। यजुर्वेद कर्मकाण्ड प्रधान वेद है। इसके दो भाग हैं- (क) कृष्ण यजुर्वेद
    (ख) शुक्ल यजुर्वेद
    (क) कृष्ण यजुर्वेद : इसमें छन्दबद्ध मंत्र गद्यात्मक वाक्य हैं । • कृष्ण यजुर्वेद की मुख्य शाखायें हैं – तैत्तिरीय काठक , मैत्रायणी तथा कपिष्ठल
    (ख) शुक्ल यजुर्वेद :इसमें केवल मंत्र ही हैं | इसकी मुख्य शाखाएं  हैं- माध्यन्दिन तथा काण्व।
  • इसकी संहिताओं को ‘ वाजसनेय ‘ भी कहा गया है , क्योंकि वाजसनी के पुत्र याज्ञवल्क्य इसके द्रष्टा थे।
  • यजुर्वेद में कुल 40 अध्याय हैं ।
  1. अथर्ववेद:
  • उपर्युक्त तीनों सहितायें जहाँ परलोक सम्बन्धी विषयों का प्रतिपादन करती हैं वहीं अथर्ववेद संहिता लौकिक फल प्रदान करने वाली है।
  • ‘अथर्वा’ नामक ऋषि इसके प्रथम द्रष्टा हैं| अत: उन्हीं के नाम पर इस ‘ अथर्ववेद कहा गया ।
  • इसके दूसरे द्रष्टा आंगिरस ऋषि के नाम इसे ‘ अथर्वागिंडरसवेद ‘ भी कहा जाता है ।
  • अथर्ववेद में उस समय के समाज का चित्र मिलता है जब आर्यों ने अनायों के अनेक धार्मिक विश्वासों को अपना लिया था ।
  • अथर्ववेद की दो शाखायें हैं – पिप्पलाद एवं शौनक
  • इस संहिता में कुल 20 कांड 731 सूक्त तथा 5987 मंत्रों का संग्रह है। इसमें लगभग 1200 मंत्र ऋग्वेद से उद्धृत हैं • इसकी कुछ ऋचायें यज्ञ सम्बन्धी तथा ब्रह्म विद्या विषयक होने के कारण इसे ‘ ब्रह्मवेद ‘ भी कहा जाता है ।  लेकिन इसके अधिकांश मंत्र लौकिक जीवन से सम्बन्धित हैं ।
  • रोग निवारण , तंत्र – मंत्र , जादू – टोना , शाप वशीकरण , आशीर्वाद , स्तुति , प्रायश्चित औषधि , अनुसंधान , विवाह , प्रेम , राजकम मातृभूमि महात्म्य आदि विविध विषयों से सम्बद्ध मंत्र तथा सामान्य मनुष्यों के विचारों विश्वासों अंधविश्वासों इत्यादि का वर्णन अथर्ववेद से प्राप्त होता है।
  • आयुर्वेद के सिद्धांत तथा व्यवहार जगत की अनेक बातें भी इसमें हैं।