प्रतिचुंबकत्व

 

प्रतिचुंबकीय पदार्थ वह होते हैं जिनमें बाह्य चुंबकीय क्षेत्र में अधिक तीव्रता वाले भाग से कम तीव्रता वाले भाग की ओर जाने की प्रवृत्ति होती है । दूसरे शब्दों में कहें तो चुंबक लोहे जैसी धातुओं को तो अपनी ओर आकर्षित करता है , परंतु यह प्रतिचुंबकीय पदार्थों को विकर्षित करेगा ।

चित्र 5.12 ( a ) , बाह्य चुंबकीय क्षेत्र में रखी प्रतिचुंबकीय पदार्थ की एक छड़ दर्शाता है । क्षेत्र रेखाएँ विकर्षित होती हैं या दूर हटती हैं इसलिए पदार्थ के अन्दर क्षेत्र कम हो जाता है| छड़ को किसी असमान चुंबकीय क्षेत्र में रखने पर इसकी प्रवृत्ति अधिक क्षेत्र से कम क्षेत्र की ओर जाने की होती है ।

 प्रतिचुंबकत्व की सरलतम व्याख्या इस प्रकार है – नाभिक के चारों ओर घूमते इलेक्ट्रॉनों के कारण कक्षीय कोणीय संवेग होता है । ये प्ररिक्रमण करते इलेक्ट्रॉन एक धारावाही लूप के समतुल्य होते हैं और इस कारण इनका कक्षीय चुंबकीय आघूर्ण होता है , प्रतिचुंबकीय पदार्थ वे होते हैं जिनके परमाणु में परिणामी चुंबकीय आघूर्ण शून्य होता है । जब कोई बाह्य चुंबकीय क्षेत्र आरोपित किया जाता है तो जिन इलेक्ट्रॉनों के कक्षीय चुंबकीय आघूर्ण क्षेत्र की दिशा में होते हैं उनकी गति मंद हो जाती है और जिनके चुंबकीय आघूर्ण क्षेत्र के विपरीत दिशा में होते हैं उनकी गति बढ़ जाती है । ऐसा लेंज के नियम के अनुसार प्रेरित धारा के कारण होता है  इस प्रकार पदार्थ में परिणामी चुंबकीय आघूर्ण आरोपित क्षेत्र के विपरीत दिशा में विकसित होता है और इस कारण यह प्रतिकर्षित होता है ।

 कुछ प्रतिचुंबकीय पदार्थ हैं- बिस्मथ , ताँबा , सीसा , सिलिकन , नाइट्रोजन ( STP पर ) , पानी एव सोडियम क्लोराइड । प्रति चुंबकत्व सभी पदार्थों में विद्यमान होता है । परंतु , अधिकांश पदार्थों के लिए यह इतना क्षीण होता है कि अनुचुंबकत्व एवं लौह चुंबकत्व जैसे प्रभाव इस पर हावी हो जाते हैं । सबसे अधिक असामान्य प्रतिचुंबकीय पदार्थ हैं अति चालका ये ऐसी धातुएँ हैं , जिनको यदि बहुत निम्न ताप तक ठंडा कर दिया जाता है तो ये पूर्ण चालकता एवं पूर्ण प्रतिचुंबकत्व दोनों प्रदर्शित के करती हैं । चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ पूर्णत : इनके बाहर रहती हैं , x=-1 एव = µr =0  एक अतिचालक एक चुबक को प्रतिकर्षित करेगा और ( न्यूटन के तृतीय नियमानुसार ) स्वयं इसके द्वारा प्रतिकर्षित होगा । अतिचालकों में पूर्ण प्रतिचुंबकत्व की यह परिघटना इसके आविष्कारक के नाम पर माइस्नर प्रभाव कहलाती है । अनेक भिन्न परिस्थितियों में जैसे कि , चुंबकीकृत अधरगामी अति रेलगाड़ियों को चलाने में अतिचालक चुंबकों का लाभ उठाया जा सकता है ।