विद्युत तथा चुंबकत्व का एकीकरण –
प्राचीन काल में विद्युत तथा चुंबकत्व पृथक विषय समझे जाते थे। विद्युत के अंतर्गत कांच की छड़ों, बिल्ली के समूर, बैटरी, तड़ित आदि के आवेशों पर चर्चा होती थी। जबकि चुंबकत्व के अंतर्गत चुंबकों लौह-छीलन, चुंबकीय सुई आदि में अन्योन्य क्रिया का वर्णन किया जाता था। सन 1820 ई. में डेनमार्क के वैज्ञानिक आर्स्टेड ने यह पाया कि चुंबकीय सुई के निकट रखे तार से विद्युत धारा प्रवाहित करने पर सुई विक्षेपित हो जाती है।एम्पियर तथा फैराडे ने इस प्रेक्षण का यह कहकर पोषण किया गतिशील आवेश चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करते हैं तथा गतिशील चुंबक विद्युत धारा उत्पन्न करते हैं। विद्युत तथा चुंबकत्व में एकीकरण तब स्थापित हुआ जब स्कॉटलैंड के भौतिकविद मैक्सवेल तथा हॉलैंड के भौतिकविद लोरेंज ने एक सिद्धांत प्रतिपादित किया जिसमें उन्होंने यह दर्शाया कि यह दोनों विषय एक दूसरे पर निर्भर हैं। इस क्षेत्र को विद्युत चुंबकत्व कहते हैं। हमारे चारों ओर की अधिकांश परिघटनाओं की व्याख्या विद्युत चुंबकत्व के अंतर्गत की जा सकती है। वे सभी बल जिनके विषय में हम विचार करते हैं जैसे घर्षण पदार्थ को संयोजित रखने के लिए उनके परमाणुओं के बीच लगने वाला रासायनिक बल यहां तक कि सजीवों की कोशिकाओं में होने वाली प्रक्रियाओं की व्याख्या करने वाले बालों का उद्भव भी विद्युत चुंबकीय बलों से हुआ है। विद्युत चुंबकीय बल प्रकृति के मूल बलों में से एक है।
मैक्सवेल ने चार समीकरण प्रस्तुत किए जिनकी क्लासिकल विद्युत चुंबकत्व में वही भूमिका है, जो यांत्रिकी में न्यूटन की गति की समीकरणों तथा गुरुत्वाकर्षण नियम की है।उन्होंने यह भी प्रमाणित किया कि प्रकाश की प्रकृति विद्युत चुंबकीय है तथा इसकी चाल केवल विद्युत तथा चुंबकीय मापों द्वारा प्राप्त की जा सकती है।उन्होंने यह भी दावा किया कि प्रकाशिकी के विज्ञान तथा विद्युत एवं चुंबकत्व में प्रगाढ़ संबंध है।विद्युत एक चुंबकत्व का विज्ञान आधुनिक प्रौद्योगिकी सभ्यता की नींव है।विद्युत शक्ति, दूरसंचार, रेडियो और टेलीविजन तथा दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली विस्तृत प्रकार की प्रायोगिक युक्तियां इसी विज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित है।यद्यपि गतिशील आवेशित कण विद्युत तथा चुंबकीय दोनों बल आरोपित करते हैं परंतु ऐसे निर्देश फ्रेम जिसमें सभी आवेश विराम में हो, आरोपित बल के केवल विद्युत बल होते हैं।आप जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण बल दीर्घ परासी बल है।इसका प्रभाव वहां भी अनुभव किया जाता है, जहां अन्योन्य क्रिया करने वाले कणों के बीच की दूरी अत्यधिक होती है क्योंकि यह बल अन्योन्य क्रिया करने वाले पिडों के बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुसार घटता है।